कांबली का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर 1991 में शुरू हुआ। शुरुआती मैचों में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और अपनी आक्रामक बल्लेबाजी से सबको प्रभावित किया। उनके पहले सात एकदिवसीय मैचों में दो शतक शामिल थे, जिससे उनकी प्रतिभा का अंदाजा लगाया जा सकता था। टेस्ट क्रिकेट में भी उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया और दो दोहरे शतक लगाए। लेकिन यह सफलता लंबे समय तक नहीं टिक सकी।

धीरे-धीरे कांबली का प्रदर्शन गिरने लगा। उनकी फिटनेस और अनुशासनहीनता मुख्य चिंता का विषय बन गई। मीडिया और क्रिकेट विशेषज्ञों ने उनकी जीवनशैली पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। चयनकर्ताओं का विश्वास उनसे उठने लगा और उन्हें टीम से अंदर-बाहर किया जाने लगा।

कांबली का विवादों से भी नाता रहा। कई बार उनके बयान और व्यवहार विवाद का कारण बने। 2009 में उन्होंने एक रियलिटी शो में भाग लिया, जिससे उनकी छवि को और नुकसान पहुँचा। क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी वे कई बार विवादों में घिरे रहे।

कांबली की कहानी एक प्रतिभाशाली क्रिकेटर की दुखद कहानी है, जो अपनी पूरी क्षमता को हासिल नहीं कर सका। उनका करियर एक उदाहरण है कि प्रतिभा के साथ-साथ अनुशासन और समर्पण भी जरूरी है। उनकी कहानी युवा खिलाड़ियों के लिए एक सीख है कि प्रसिद्धि और सफलता के साथ जिम्मेदारी भी आती है। क्रिकेट के इतिहास में कांबली एक ऐसे खिलाड़ी के रूप में याद किये जाएंगे जिसमें क्षमता तो बहुत थी, लेकिन वह उसे पूरी तरह से उभार नहीं पाया। यह एक ऐसी अधूरी कहानी है जो क्रिकेट प्रेमियों को हमेशा याद रहेगी।