षटतिला एकादशी व्रत कथा: क्यों मनाते हैं, पूजा विधि और महत्व
षटतिला एकादशी व्रत की कथा एक निर्धन ब्राह्मणी की कहानी से जुड़ी है। वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी और नियमित रूप से व्रत-पूजन किया करती थी। एक बार देवऋषि नारद ने उससे पूछा कि वह किस प्रकार पूजा करती है और उसे क्या फल मिलता है। ब्राह्मणी ने बताया कि वह यथाशक्ति दान-पुण्य करती है पर उसे अभी तक कोई विशेष फल प्राप्त नहीं हुआ है। नारद जी ने उसे षटतिला एकादशी व्रत करने की सलाह दी और विधि-विधान बताया।
ब्राह्मणी ने नारद जी के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। उसने तिल से स्नान किया, तिल का तिलक लगाया, तिल का दान दिया, तिल से हवन किया, तिल मिश्रित भोजन किया और तिल से बने व्यंजन का सेवन किया। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणी को स्वर्ग की प्राप्ति हुई और उसके सभी पापों का नाश हुआ।
षटतिला एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को धन-धान्य, सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला और पुण्य प्रदान करने वाला माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
षटतिला एकादशी व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करें। फूल, फल, तिल, धूप, दीप आदि अर्पित करें। षटतिला एकादशी व्रत कथा का पाठ करें और भगवान विष्णु का ध्यान करें। संध्या समय फिर से पूजा करें और व्रत का पारण करें।
इस दिन तिल का दान करने का विशेष महत्व है। तिल का दान करने से पितरों को तृप्ति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराना भी शुभ माना जाता है।
षटतिला एकादशी व्रत सभी के लिए बहुत ही लाभकारी है। यह व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसलिए, हमें षटतिला एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करनी चाहिए।