"वंदे मातरम्" की रचना के पीछे बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की गहरी देशभक्ति और मातृभूमि के प्रति प्रेम प्रमुख कारण था। उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था और देशवासियों में स्वतंत्रता की ललक बढ़ रही थी। इस गीत ने उस ललक को और तेज कर दिया और लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में कूदने के लिए प्रेरित किया।

शुरुआत में "वंदे मातरम्" को 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक अधिवेशन में गाया गया था। इसके बाद, यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन का एक अभिन्न अंग बन गया। महात्मा गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक, कई स्वतंत्रता सेनानियों ने इस गीत को अपना प्रतीक माना।

"वंदे मातरम्" के पहले दो पद राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किए गए हैं। पूरे गीत में माँ भारती की सुंदरता, शक्ति और माधुर्य का वर्णन है। यह गीत हमें अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना जगाता है।

"वंदे मातरम्" के अलावा, भारत का एक राष्ट्रगान भी है, "जन गण मन", जिसे रवींद्रनाथ टैगोर ने रचा था। दोनों गीतों का अपना अलग महत्व है और ये भारतीय संस्कृति और इतिहास के अभिन्न अंग हैं।

हालांकि "वंदे मातरम्" की रचना को काफी समय बीत चुका है, लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। यह गीत हमें अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है और हमें एक एकजुट राष्ट्र के रूप में जोड़ता है। यह गीत हमारे लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत है।

"वंदे मातरम्" के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि इसे सबसे पहले स्वरबद्ध करने वाले रवींद्रनाथ टैगोर थे। उन्होंने इस गीत को एक नई पहचान दी और इसे लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आज भी जब हम "वंदे मातरम्" गाते हैं, तो हमारे मन में देशभक्ति की भावना उमड़ आती है। यह गीत हमें हमारे वीर पूर्वजों की याद दिलाता है जिन्होंने इस देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।