कलकत्ता उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र पश्चिम बंगाल और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तक फैला हुआ है। यह न्यायालय विभिन्न प्रकार के मामलों की सुनवाई करता है, जिनमें सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, वाणिज्यिक, और राजस्व मामले शामिल हैं। इसकी विशाल क्षेत्राधिकार के कारण, यह न्यायालय लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करता है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने समय-समय पर ऐसे फैसले दिए हैं जिन्होंने सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया है। उदाहरण के लिए, महिलाओं के अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण, और श्रमिक अधिकारों से संबंधित मामलों में इसके फैसलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन फैसलों ने कानून के विकास को प्रभावित किया है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद की है।

इस न्यायालय के फैसलों का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभाव पड़ा है। इसके कई फैसलों को उच्चतम न्यायालय ने भी अपनाया है, जिससे भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक रूपता आई है। इसके अलावा, कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसलों का अध्ययन दुनिया भर के कानूनी विद्वानों द्वारा किया जाता है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने तकनीकी उन्नति को भी अपनाया है। ई-फाइलिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, और ऑनलाइन जानकारी जैसी सुविधाओं ने न्यायिक प्रक्रिया को और भी पारदर्शी और सुगम बनाया है। इससे नागरिकों को न्याय तक पहुँच आसान हुई है।

हालांकि कलकत्ता उच्च न्यायालय को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे लंबित मामलों की बढ़ती संख्या और न्यायिक अधिकारियों की कमी। लेकिन इसके बावजूद, यह न्यायालय न्याय प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है और भारतीय लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में कार्य कर रहा है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय का इतिहास गौरवशाली रहा है और यह भविष्य में भी न्याय के लिए एक प्रकाश स्तंभ बना रहेगा। इसकी भूमिका न केवल कानून की व्याख्या करने में है, बल्कि समाज को आकार देने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में भी है।