जयशंकर की कूटनीतिक दृढ़ता और स्पष्टवादिता ने भारत को वैश्विक मुद्दों पर अपनी बात बेबाकी से रखने में सक्षम बनाया है। चाहे वो सीमा विवाद हो, आतंकवाद का मुद्दा हो या फिर व्यापारिक समझौते, जयशंकर ने भारत के हितों की रक्षा के लिए हमेशा एक मजबूत रुख अपनाया है। उनकी विदेश नीति "भारत प्रथम" के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका उद्देश्य देश के विकास और सुरक्षा को सर्वोपरि रखना है।

यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक संकटों के दौरान, जयशंकर ने भारत की तटस्थता और शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि भारत किसी भी गुटबंदी में शामिल होने के बजाय स्वतंत्र रूप से अपने निर्णय लेगा। यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की प्रतिष्ठा को और बढ़ाता है।

जयशंकर के नेतृत्व में, भारत नए रणनीतिक साझेदारियों की तलाश में भी है। क्वाड, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह समूह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

आर्थिक क्षेत्र में भी जयशंकर ने भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने विभिन्न देशों के साथ व्यापार समझौतों पर काम किया है और भारतीय उत्पादों के लिए नए बाजार खोले हैं।

जयशंकर की विदेश नीति का एक और महत्वपूर्ण पहलू है प्रवासी भारतीयों के साथ संबंधों को मजबूत करना। उन्होंने विश्व भर में फैले भारतीय समुदाय को भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखा है।

कुल मिलाकर, जयशंकर के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति गतिशील, आत्मविश्वास से भरी और परिणाम-उन्मुख है। वे भारत को विश्व मंच पर एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनका कार्यकाल भारत के लिए एक नए युग का सूत्रपात है, जहाँ भारत अपने हितों की रक्षा करने और वैश्विक मुद्दों पर अपनी आवाज उठाने से नहीं हिचकिचाता।