CAG: भारत की वित्तीय निगरानी का पहरेदार - क्या, क्यों और कैसे?
CAG का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत किया गया है। इस संस्था की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं, जैसे कि CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है और उनका कार्यकाल निश्चित होता है। CAG को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त रखा जाता है।
CAG के कार्यों में सरकारी खातों की लेखा परीक्षा, सरकारी उपक्रमों की कार्यप्रणाली की जांच, और विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा शामिल है। CAG अपनी रिपोर्ट्स में वित्तीय अनियमितताओं, गड़बड़ियों, और सुधार के सुझावों को भी उजागर करता है।
CAG की रिपोर्ट्स अक्सर मीडिया में सुर्खियां बनती हैं और जनता के बीच जागरूकता पैदा करती हैं। यह रिपोर्ट्स सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण फीडबैक तंत्र का काम करती हैं और उन्हें अपनी नीतियों और कार्यक्रमों में सुधार करने में मदद करती हैं।
CAG न केवल वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करता है, बल्कि सरकारी खर्चों में पारदर्शिता और जवाबदेही को भी बढ़ावा देता है। इससे सरकार को जनता का विश्वास बनाए रखने में मदद मिलती है।
CAG की भूमिका एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निगरानीकर्ता के रूप में बेहद महत्वपूर्ण है। यह संस्था लोकतंत्र के मूल्यों को मजबूत करने और सुशासन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहाँ सरकारी खर्च बहुत बड़े पैमाने पर होते हैं, CAG की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह संस्था यह सुनिश्चित करती है कि जनता का पैसा सही जगह पर और सही तरीके से खर्च हो।
CAG की निरंतर निगरानी और सतर्कता के कारण ही सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहती है। यह संस्था भारत के वित्तीय स्वास्थ्य की रक्षा करने वाले एक महत्वपूर्ण पहरेदार के रूप में कार्य करती है।