आज़ादी के बाद से ही, सीमा विवाद, तस्करी, और अवैध घुसपैठ जैसे मुद्दों ने दोनों देशों के रिश्तों को प्रभावित किया है। बांग्लादेशी नागरिकों का भारत में अवैध प्रवेश एक प्रमुख चिंता का विषय रहा है, जिसके कारण भारत ने सीमा पर बाड़ लगाने जैसे कदम उठाए हैं। इससे दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हुआ है और सीमा पर हिंसा की घटनाएँ भी हुई हैं।

हालाँकि, पिछले कुछ दशकों में दोनों देशों ने सीमा प्रबंधन, व्यापार, और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। 2015 में भूमि सीमा समझौते के माध्यम से 162 छिटपुट इलाकों (एनक्लेव) का आदान-प्रदान एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने दशकों पुराने सीमा विवाद का अंत किया।

सीमा पार अपराध और तस्करी पर लगाम लगाने के लिए दोनों देशों के सीमा सुरक्षा बलों के बीच नियमित बैठकें और संयुक्त गश्त भी होती है। इसके अलावा, बांग्लादेश भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँचने के लिए अपने बंदरगाहों का उपयोग करने की अनुमति देता है, जिससे व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा मिलता है।

साझा नदी प्रणालियों के प्रबंधन में भी सहयोग एक महत्वपूर्ण पहलू है। गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ दोनों देशों के लिए जीवन रेखा हैं, और इनके जल बंटवारे के मुद्दे पर नियमित बातचीत होती रहती है।

भविष्य में, दोनों देशों के लिए यह ज़रूरी है कि वे आपसी विश्वास और समझ को मज़बूत करें। सीमा प्रबंधन, व्यापार, और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाकर, भारत और बांग्लादेश न केवल अपने रिश्तों को मजबूत कर सकते हैं, बल्कि पूरे क्षेत्र के विकास और शांति में भी योगदान दे सकते हैं। सीमा, जो कभी विभाजन का प्रतीक थी, वह भविष्य में मैत्री और सहयोग का सेतु बन सकती है।