शुरुआती दौर में अमिताभ बच्चन को कई रिजेक्शन का सामना करना पड़ा था। आकाशवाणी में उनकी आवाज़ को रिजेक्ट कर दिया गया था, और कई फिल्म निर्माताओं ने उन्हें उनके लम्बे कद और गहरी आवाज़ के कारण नकार दिया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपने अथक प्रयासों से उन्होंने खुद को साबित किया और "सात हिंदुस्तानी" फ़िल्म से अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत की।

ज़ंजीर, दीवार, शोले, त्रिशूल, डॉन, काला पत्थर, इन जैसी फ़िल्मों ने अमिताभ बच्चन को "एंग्री यंग मैन" की उपाधि दिलाई। उन्होंने अपनी शानदार अभिनय क्षमता से दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बना ली। उनकी हर फ़िल्म एक सुपरहिट साबित होती थी।

अस्सी के दशक में राजनीति में भी अपनी किस्मत आज़माई। इलाहाबाद से सांसद भी रहे। हालांकि, राजनीति उनके लिए ज़्यादा लंबे समय तक नहीं रही। लेकिन इस छोटे से कार्यकाल ने भी उनके जीवन में एक अहम भूमिका निभाई।

नब्बे का दशक अमिताभ बच्चन के लिए कुछ खास अच्छा नहीं रहा। उनकी फ़िल्में फ्लॉप होने लगीं और उनका प्रोडक्शन हाउस एबीसीएल भी कर्ज़ में डूब गया। लेकिन अमिताभ ने हौसला नहीं हारा। उन्होंने "कौन बनेगा करोड़पति" जैसे टीवी शो के ज़रिये अपनी वापसी की और एक बार फिर से दर्शकों के दिलों पर राज करने लगे।

आज भी अमिताभ बच्चन उसी जोश और उत्साह के साथ काम कर रहे हैं। वो न सिर्फ़ फ़िल्मों में बल्कि विज्ञापनों, सोशल मीडिया और कई सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं। उनकी ऊर्जा और लगन आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

अमिताभ बच्चन की ज़िंदगी एक खुली किताब है। उनके संघर्ष, उनकी सफलताएं, उनकी असफलताएं, सब कुछ दुनिया के सामने है। वो एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से सब कुछ हासिल किया है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि ज़िंदगी में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए।

अमिताभ बच्चन सिर्फ़ एक नाम नहीं, एक ब्रांड हैं, एक एहसास हैं, एक प्रेरणा हैं। वो भारतीय सिनेमा के एक ऐसे सितारे हैं जो हमेशा चमकते रहेंगे।